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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अतीन्द्रिय क्षमताओं की पृष्ठभूमि

अतीन्द्रिय क्षमताओं की पृष्ठभूमि

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : श्रीवेदमाता गायत्री ट्रस्ट शान्तिकुज प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :104
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4105
आईएसबीएन :000

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गुरुदेव की वचन...

पूर्वाभास-संयोग नहीं तथ्य


समय और परिस्थति विशेष के अनुसार घटने वाली घटनाओं तथा पूर्वानुमानों को कई लोग संयोग मात्र कहकर उन्हें बहुत हल्केपन से लेते हैं। लेकिन पूर्वाभास की घटनाएं, जिनका उल्लेख इस पुस्तक में किया गया है तथ्यों पर आधारित है। इस तरह की घटनाओं को वस्तुतः पूर्व दैवी चेतावनी के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए।

हमारे बाह्य जगत् की अपेक्षा, अंतर्जगत् की शक्ति और सक्रियता अदृश्य होकर भी कहीं अधिक प्रखर और प्रभावपूर्ण होती है। मस्तिष्क में क्या विचार चल रहे होते हैं, वह दिखाई नहीं देता, पर क्रिया व्यापार की समस्त भूमिका मनोजगत् में ही बनती है। किसी व्यक्ति को किसी के मन की बात का पता चल जाए तो प्रकारांतर से वह भी लाभ ले सकता है। पूर्वाभासों को इसी रूप में लिया जा सके, तो अनिष्टकारी परिस्थितियों से बचना और लाभदायक संभावनाओं की तैयारी करना किसी के लिए भी संभव हो सकता है।

अंतर्जगत् विशाल और विराट् है। उससे एक व्यक्ति ही नहीं—बड़े समुदाय भी प्रेरित होते हैं। पूर्वाभास की ऐसी ही एक घटना यों है-अमेरफान वेल्स का एक छोटा कस्बा है। वर्षाकाल की बात है। समूचे कस्बे के एक अजीब खलबली मची। अधिकांश लोगों को या तो रात्रि के स्वप्नों में या दिन में यों अनायास ही पूर्वाभास होता है कि, उनकी मृत्यु शीघ्र ही हो जाएगी। अमेरफानवासियों की इस बेचैनी ने इस तरह सार्वजनिक चर्च का रूप ग्रहण किया कि जर्मनी के सुप्रसिद्ध मानस शास्त्री जान मारकर को घटना के अध्ययन के लिए बाध्य होना पड़ा। सर्वेक्षण के मध्य उन्होंने पाया कि, कस्बे के अधिकांश व्यक्तियों को इस तरह का
पूर्वाभास हो रहा है। यही नहीं, लोगों के चेहरे पर भय की रेखाएँ स्पष्ट झलकती थीं।

मुश्किल से एक पखवाड़ा बीता था कि, सचमुच समीप के पहाड़ से एक दिन ज्वालामुखी फटा-कोयले की राख का भयंकर तूफान उमड़ा और उसने देखते-देखते हजारों व्यक्तियों को मौत की नींद सुला दिया। एक स्कूल की दीवार में हुए भयंकर विस्फोट से तो १०० बच्चे एक ही स्थान पर मृत्यु के घाट उतर गये।

इस विद्यालय की एक नौ वर्षीय बालिका तब तो बच गई थी, किंतु घटना के १० दिन बाद वह एकाएक अपनी माँ से बोली, माँ-मैं मृत्यु से बिल्कुल नहीं डरती, क्योंकि मेरे साथ भगवान् रहते हैं। माँ ने समझा, बच्ची पूर्व घटना से भयाक्रांत है, इसलिए उसने उसे हृदय से लगाकर समझाया, नहीं बेटी, अब तो जो होना था—हो गया, अब तू निश्चित रह।

जान मारकर ने उस बालिका से भी भेंट की और पूछा-बेटी तुम ऐसा क्यों सोचती हो ? बालिका ने उत्तर दिया-क्योंकि मुझे अपने चारों ओर अंधकार दिखाई देता है। इस भेंट के दूसरे ही दिन मध्याह्न में बच्ची का निधन हो गया। संयोग से उसे जिस स्थान पर दफनाया। वह स्थान कोयले की राख की ५६ फुट परत से ढका हुआ था। जान मारकर ने इस अध्ययन से यह भी निष्कर्ष निकाला कि, समस्त प्राणि जगत् एक ही चेतना के समुद्र से संबद्ध है। यह संपर्क जितना प्रगाढ़ और निर्मल हो, जानकारियाँ उतनी ही अधिक और लाभ भी वैसा ही लिया जा सकता है। अतएव आध्यात्मिक साधनों द्वारा अंतर्जगत् का क्षेत्र विकसित किया जाना किसी भी भौतिक हित की अपेक्षा अधिक आवश्यक है।

पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का आधार अब विज्ञानवेत्ताओं को एक विशिष्ट तत्त्व 'ग्रेविटी' के रूप में हाथ लगा है। यह ग्रेविटी प्रत्येक पिंड से निकलता है और उसकी आकर्षण शक्ति के स्तर की संरचना करता है। इसी के आधार पर एक ग्रह दूसरे को
खींचता है और यह विश्व ब्रह्मांड एक व्यवस्थित संबंध श्रृंखला से जकड़ा हुआ है।

ग्रह-नक्षत्रों की तरह ही मनुष्य में भी एक विशिष्ट विद्युत् का प्रवाह निःसृत होता है। वह एक-दूसरे को बाँधता है। इस प्रकार समस्त मनुष्य जाति का प्रत्येक सदस्य एक-दूसरे के साथ अनजाने ही बँधा हुआ है और जिन धागों को यह बंधन कार्य करना पड़ता है, वही एक से दूसरे तक उसकी सत्ता का भला-बुरा प्रभाव पहुंचाता है। एक व्यक्ति दूसरे के विचारों से अनायास ही परिचित और प्रभावित होता रहता है। यह आगे की बात है कि, वह प्रभाव कितना भारी-हल्का था और उसे किस कदर, किसने स्वीकार या अस्वीकार किया।

आइंस्टीन 'समग्र ज्ञान' को सामान्य ज्ञान की परिधि से आगे की बात मानते थे। वे कहते थे जिज्ञासा, प्रशिक्षण, चिंतन एवं अनुभव के आधार पर जो जाना जाता है उतना ही 'ज्ञान' नहीं है, वरन् चेतना का एक विलक्षण स्तर भी है, जिसे अंतर्ज्ञान कहा जा सकता है। संसार के महान आविष्कार इस अंतर्ज्ञान-प्रज्ञा के सहारे ही मस्तिष्क पर उतरे हैं। जिन बातों का कोई आधार न था—उनकी सूझ अचानक कहाँ से उतरी ? इसका उत्तर सहज ही नहीं दिया जा सकता, क्योंकि उसका कोई संगत एवं व्यवस्थित कारण नहीं है। रहस्मय अनुभूतियाँ जिस प्रज्ञा से प्रादुर्भूत होती हैं, उन्हें अतिमानवीय मानना पड़ेगा।

इस तरह के अतींद्रिय प्रत्यक्ष बोध जब कसौटी पर सत्य पाए गए तब वैज्ञानिकों को भी उसके सत्य तक पहुँचने की जिज्ञासा जाग्रत् हुई। इस समय इंग्लैंड, अमेरिका, जर्मनी, रूस चैकोस्लोवाकिया, नीदरलैंड आदि अनेक प्रमुख देशों में "परामनोविज्ञान" की शाखाओं का तेजी से विकास हो रहा है, जो इस तरह की घटनाओं से विस्तृत अध्ययन और विवेचन द्वारा वस्तु स्थिति तक पहुँचने का प्रयास करती हैं। अतींद्रिय बोध या पूर्वाभास को तीन खंडों में विभक्त करते हुए रूसी परामनोवैज्ञानिकों की
मान्यता है कि, मनुष्य के "मन" में कुछ ऐसे तत्त्व विद्यमान हैं, जिनकी जानकारी विज्ञान को तो नहीं, किंतु यदि उनका विकास और नियंत्रण किया जा सके तो यह एक नितांत सामान्य वैज्ञानिक प्रक्रिया के रूप में सामने आ सकता है। उनके अनुसार यह इंद्रियों की क्षमता-विस्तार का एक अति प्रारंभिक चमत्कार है। मनीषियों का मत भी यही है कि, मन की सामर्थ्य अनंत और अपार है, उसे जितना अधिक पैना, केंद्रित और सूक्ष्मग्राही बनाया जायेगा, वह उतना ही अधिक विलक्षण और चमत्कारी, ज्ञान-विज्ञान, अनुभूति और क्षमताओं से विभूषित होता चला जायेगा।

पूर्वाभास की तीन कक्षाएँ हैं—(१) परींद्रिय ज्ञान (टेलीपैथी) या किसी जीवित व्यक्ति द्वारा घनीभूत स्मृति, अत्यधिक भावुक होकर हृदय से किसी को पुकारना या संदेश देना। (२) अतींद्रिय ज्ञान (क्लेयर व येन्स) जिसमें अपनी स्वतः की क्षमताएँ विस्तृत होकर घटना स्थल से सायुज्य स्थापित करतीं और अपनी अंतःस्थिति के अनुरूप स्थिति का बोध करती हैं। (३) पूर्व संचित ज्ञान अर्थात् पूर्व जन्मों की स्मृति-जो मस्तिष्क में साइनेप्सेस (मस्तिष्क में भूरे रंग का एक पदार्थ) होता है। उसमें कुछ, तरह की विलक्षण आड़ी-टेढ़ी लाइनें आती हैं। जैसे राख के ढेर में किसी कीड़े के रेंग जाने से पड़ जाती है। इन्हें "साइनेप्सस" कहते हैं। इनमें जब मन एक क्षण के लिए एकाकार होता है, तो ग्रामोफोन या टेप-रिकार्डर पर सुई घूमने से उत्पन्न ध्वनि की तरह पूर्वाभास या भविष्य ज्ञान जैसा हो सकता है। मानसिक संस्थान की रचना जितनी विलक्षण है, उतनी ही अद्भुत शक्ति और क्षमताओं से वह ओतप्रोत भी है। बिना तार के तार से भी उन्नत प्रकार से यदि इस तरह प्रकृति के अंतराल के रहस्य कभी अनायास ही समझ में आ जाए, तो इस मानसिक संस्थान को प्रौढ़ बनाकर उसे विकसित करके तो और भी महत्त्वपूर्ण लाभ–योगियों जैसी सिद्धियाँ, सामर्थ्य प्राप्त की जा सकती हैं।


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    अनुक्रम

  1. भविष्यवाणियों से सार्थक दिशा बोध
  2. भविष्यवक्ताओं की परंपरा
  3. अतींद्रिय क्षमताओं की पृष्ठभूमि व आधार
  4. कल्पनाएँ सजीव सक्रिय
  5. श्रवण और दर्शन की दिव्य शक्तियाँ
  6. अंतर्निहित विभूतियों का आभास-प्रकाश
  7. पूर्वाभास और स्वप्न
  8. पूर्वाभास-संयोग नहीं तथ्य
  9. पूर्वाभास से मार्गदर्शन
  10. भूत और भविष्य - ज्ञात और ज्ञेय
  11. सपनों के झरोखे से
  12. पूर्वाभास और अतींद्रिय दर्शन के वैज्ञानिक आधार
  13. समय फैलता व सिकुड़ता है
  14. समय और चेतना से परे

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